छत्तीसगढ़

नैतिक शिक्षा के महारथी, बहुमुखी प्रतिभा के धनी कविवर अवधबिहारी ‘अवध’ की अविस्मरणीय जीवन गाथा…..

विद्यार्थियों के जीवन में सद्ज्ञान रूपी सुनहरी सुरभि बिखरने वाले लोकप्रिय समाजसेवी कवि अवधबिहारी 'अवध'

5 सितम्बर, शिक्षक दिवस पर विशेष

भारतीय संस्कृति को सजाने- संवारने में सतत संघर्षशील अवध की आत्म कहानी

संस्कारशाला हेतु छत्तीसगढ़ में भी अत्यंत लोकप्रिय हैं कवि अवधबिहारी ‘अवध’

दलित, शोषित, वंचित, पीड़ित और अशिक्षित ग्रामीणों एवम् आदिवासियों के उत्थान लिए सतत् कार्यरत श्री अवध बिहारी जी उत्तर प्रदेश के दुर्गम और दुरुह आदिवासी एवम् वनवासी बाहुल्य क्षेत्र सोनभद्र के दुद्धी तहसील अंतर्गत विकास खंड बभनी के ग्राम चक चपकी के स्थायी निवासी हैं।

प्राकृतिक सम्पदाओं से भरा परन्तु भौगोलिक दृष्टि से अत्यंत दुर्गम यह स्थान भारत के गुलामी काल खण्ड में अंग्रेजों के शोषण का केन्द्र रहा है। शोषण की यह पराकाष्ठा रही थी कि यहां जन सामान्य शारीरिक ही नहीं, मानसिक गुलाम बनकर जीवनयापन को विवश था। आत्मबल समाप्तप्रायः था, विकास के दर्शन दिवा स्वप्न जैसे थे। क्षेत्रवासी बेबसी का जीवन ढोने को विवश थे।

इन विकट परिस्थितियों में क्षेत्र के एक विचारशील युवा ने जन जागरण का बीड़ा उठाया और अपना जीवन मानो ग्रामीणों और आदिवासियों को समर्पित कर दिया। श्री अवध बिहारी ने क्षेत्र की भोली, मासूम और नादान जनता के क्रमबद्ध विकास के लिए एक योजना का खाका तैयार किया। उन्होंने अनुभव किया कि सीधे-सीधे जनता को लाभ देना बन्दर के हाथ में उस्तरा देने के समान है, पहले जनता को सुसंस्कृत और शिक्षित करना होगा, जिससे वह विकास की मुख्य धारा में देश के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल सके। समस्या गम्भीर थी, क्योंकि इस क्षेत्र का परिवेश शिक्षा के महत्व से अछूता था। यहां आवश्यकता थी एक आकर्षक परन्तु प्रभावी शैली की।

श्री अवध ने मंथन किया और शिक्षा के दोनों पहलुओं पर कार्य करने का संकल्प लिया। अब वह जनता को शिक्षित होने की प्रेरणा तो देने ही लगे, साथ ही रोचक और छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से नौनिहालों को नैतिक शिक्षा से प्रेरित करने लगे। मानव जीवन में नैतिक मूल्यों के महत्व को बताने पर इनकी शिक्षा जन मानस के लिए जीवनोपयोगी होती चली गई।

बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री अवध बिहारी जी अपनी सहज क्षमताओं से परे जाकर, गांव-चौपालों, विद्यालयों, इंटरमीडिएट कॉलेजों और महाविद्यालयों में नैतिक शिक्षा के माध्यम से छात्र-छात्राओं में देश-भक्ति, सत्य, अहिंसा, प्रेम, परोपकार, क्षमा, दया ,शांति, सदाचार और सद्भाव जैसे मानवीय सद्गुणों को जगाने के लिए समर्पित हैं।

आयु के जिस पड़ाव पर नवयुवक आगामी जीवन के हसीन सपनों में खोया रहता है, वहीं इन्होंने समाज उत्थान को अपना जीवन समर्पित कर दिया। समाज सेवा के इस जुनून में ये कुछ इस प्रकार से खोए कि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि जागरण, नवीन तकनीकों का उपयोग, साहित्य सेवा, नैतिक शिक्षा, संस्कृति एवम् संस्कार जागरण और आयुर्वेद का प्रचार प्रसार ही इनके जीवन का उद्देश्य बन गया।

श्री अवध बिहारी द्वारा निरंतर किए जा रहे कार्यों का महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि इनका कार्य क्षेत्र भारतवर्ष का सर्वाधिक शोषित ऐसा आदिवासी क्षेत्र है, जहां समाज सेवा के कार्य करना तो दूर, इसके विषय में सोचना भी दुष्कर है। ऐसे विकट क्षेत्र में कार्य करना एक महामानव के लिए ही सम्भव है।

श्री अवध जी के इस समर्पण, विश्वास और निरन्तरता का परिणाम धीरे-धीरे सामने आने लगा है। छात्र-छात्राओं, अध्यापकों एवं ग्रामीणों के मध्य इनके सतत प्रयासों के फलस्वरूप नवयुवकों में चरित्र निर्माण और स्वाबलंबन की भावना पैदा हुई है। इन्होंने छात्र-छात्राओं में संस्कारों के जागरण की जो श्रृंखला आरंभ की है उससे प्रभावित होकर क्षेत्र के युवा व्यवहारिकता के आभासी जगत की अपेक्षा चारित्रिक दृढ़ता को प्राथमिकता देने लगे हैं।

वर्तमान में पाश्चात्य संस्कृति की अंधी दौड़ में नैतिकता और सामाजिकता के मूल्य और संस्कारों का ह्रास होता जा रहा है, ऐसी स्थिति में समाज सेवा का जो दायित्व इन्होंने उठाया है, वह बिरला ही सम्भव है। देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर जैसी उक्ति को चरितार्थ करते हुए श्री अवध बिहारी जी ने उम्र और साधन की बंदिशों को पीछे छोड़ते हुए समाज में सुसंस्कार जागृति का जो अभियान चला रखा है, उससे प्रेरित होकर आज हजारों छात्र-छात्राओं ने इस कार्यक्रम में भाग लिया है और इसे आगे बढ़ाने की शपथ खाई है। इस अल्पायु में भी इन्होंने समाज सेवा और नैतिक शिक्षा के क्षेत्र में सम्पूर्ण समर्पण, निष्ठा और लगन से जो महान योगदान दिया है, यह ईश्वरीय प्रेरणा से ही संभव है।

सत्य ही किसी भी देश, समाज या वर्ग की उन्नति का मूल उसके नागरिकों की शिक्षा, संस्कृति, नैतिकता और चारित्रिक दृढ़ता में निहित होता है। किसी को विकास की राह दिखाने से पहले उसमें इन सभी गुणों को जागृत करना पड़ता है। समाज में शिक्षा और जागरूकता की कमी से कुरीतियों को बढ़ावा मिलता है। इसी कारण श्री अवध बिहारी जी का अटल प्रयास इन कुरीतियों और बुराइयों से लड़ने और इन पर विजय प्राप्त करने को प्रेरित करता है। यह प्रयास क्षेत्र की भोली भाली ग्रामीण जनता और आदिवासियों के मध्य आशा का संचार करता है।

दुनिया चलती उस राह पर,
जो महापुरुषों ने बनाई है।
पर महापुरुष कहलाता वही,
जिसने स्वयं राह बनाई है।।

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